Kiran Mishra

Add To collaction

लेखनी कहानी -01-Jul-2023

ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक धीरे-धीरे

द्रवित हुआ मन देख दुखारे
पड़ा रहूँ मै कहीं किनारे
जहाँ नीरवता बात करती
निर्भीकता कभी ना डरती
डाले हवा गले मे घेरे
वहाँ नदी बस रेत बिखेरे

    ले चल वही भुलावा देखर-------  

आज हुआ मन मेरा विह्वल
देख-देखकर लोगों का खल
अन्यायी ना प्रबल सबेरे
जहां मनुजता वृक्ष घनेरे
भृकुटि नहीं बस तने कभी भी
समर नाद न करे कोई भी

      ले चल वहाँ भुलावा देकर----------

मझधार पडूँ सुख-दुख बांटें
जेब नहीं कोई भी काटे
सत्य जहाँ हो सबसे आगे
तेज कदम में स्वार्थ भागे
खुशियों के हो मेले ठेले
उन्मुक्त मैं उडूॅं अकेले

          ले चल वहाँ भुलावा देकर----------

हुए लोग अब ज्यादा पापी
मची हुई है आपा-धापी
यहाँ द्रोपदी तार- तार है
बढ़ा हुआ यहाँ व्यभिचार है
दुर्योधन खुलेआम घूमता
नंग-नाच प्रतिदिन ही करता।

ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविकक्ष धीरे- धीरे ॥

आधे-अधूरे मिसरे!/ प्रसिद्ध पंक्तियाँ

   4
1 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

Reply